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लॉर्ड मेयो ने वायसराय के रूप में कार्य किया

गौतमीपुत्र शातकर्णी सातवाहन शासक बने

भारतीय इतिहास अध्ययन में मुद्राओं का महत्त्व कम नहीं है। भारत के प्राचीनतम् सिक्कों पर अनेक प्रकार के प्रतीक, जैसे- पर्वत, वृक्ष, पक्षी, मानव, पुष्प, ज्यामितीय आकृति आदि अंकित रहते थे। इन्हें ‘आहत मुद्रा’ (पंचमार्क क्वायंस) कहा जाता था। संभवतः इन सिक्कों को राजाओं के साथ व्यापारियों, धनपतियों और नागरिकों ने जारी किया था। सर्वाधिक आहत मुद्राएँ उत्तर मौर्यकाल में मिलती हैं जो प्रधानतः सीसे, पोटीन, ताँबें, काँसे, चाँदी और सोने की होती हैं। यूनानी शासकों की मुद्राओं पर लेख एवं तिथियाँ उत्कीर्ण मिलती हैं। शासकों की प्रतिमा और नाम के साथ सबसे पहले सिक्के हिंद-यूनानी शासकों ने जारी किये जो प्राचीन भारत का राजनीतिक इतिहास लिखने में विशेष उपयोगी सिद्ध हुए हैं। बाद में शकों, कुषाणों और भारतीय राजाओं ने भी यूनानियों के अनुरूप सिक्के चलाये।

इतिहास-निर्माण में भारतीय स्थापत्यकारों, वास्तुकारों और चित्रकारों ने अपने हथियार, छेनी, कन्नी और तूलिका के द्वारा विशेष योगदान दिया है। इनके द्वारा निर्मित प्राचीन इमारतें, मंदिरों, मूर्तियों के अवशेषों से भारत की प्राचीन सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक परिस्थितियों का ज्ञान होता है। खुदाई में मिले महत्त्वपूर्ण अवशेषों में हड़प्पा सभ्यता, पाटलिपुत्र की खुदाई में चंद्रगुप्त मौर्य के समय लकड़ी के बने राजप्रसाद के ध्वंसावशेष, कोशांबी की खुदाई से महाराज उदयन के राजप्रसाद एवं घोषिताराम बिहार के अवशेष, अतरंजीखेड़ा में खुदाई से लोहे के प्रयोग के साक्ष्य, पांडिचेरी के अरिकामेडु से खुदाई में प्राप्त रोमन मुद्राओं, बर्तनों आदि के अवशेषों से read more तत्कालीन इतिहास एवं संस्कृति की जानकारी मिलती है। मंदिर-निर्माण की प्रचलित शैलियों में ‘नागर शैली’ उत्तर भारत में प्रचलित थी, जबकि ‘द्रविड़ शैली’ दक्षिण भारत में प्रचलित थी। दक्षिणापथ में निर्मित वे मंदिर जिसमें नागर एवं द्रविड़ दोनों शैलियों का समावेश है, उसे ‘बेसर शैली‘ कहा गया है।

) में सामंती अर्थव्यवस्था विद्यमान थी।

अन्य बौद्ध ग्रंथ : लंका के इतिवृत्त महावंस और दीपवंस भी भारत के इतिहास पर प्रकाश डालते हैं। महावंस, दीपवंस व महाबोधिवंस तथा महावस्तु मौर्यकाल के इतिहास की जानकारी देते हैं। दीपवंस की रचना चौथी और महावंस की पाँचवी शताब्दी ई. में हुई। मिलिंदपन्हो में यूनानी शासक मिनेंडर और बौद्ध मिक्षु नागसेन का वार्तालाप है। इसमें ईसा की पहली दो शताब्दियों के उत्तर-पश्चिमी भारत के जीवन की झलक मिलती है। दिव्यावदान में अनेक राजाओं की कथाएँ हैं जिनके अनेक अंश चौथी शताब्दी ई.

ब्रह्मवैवर्त पुराण में पुराणों के पाँच लक्षण बताये गये हैं- सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर तथा वंशानुचरित। सर्ग बीज या आदिसृष्टि है, प्रतिसर्ग प्रलय के बाद की पुनर्सृष्टि को कहते हैं, वंश में देवताओं या ऋषियों के वंश-वृक्षों का वर्णन है, मन्वन्तर में कल्प के महायुगों का वर्णन है। वंशानुचरित पुराणों के वे अंग हैं जिनमें राजवंशों की तालिकाएँ दी गई हैं और राजनीतिक अवस्थाओं, कथाओं और घटनाओं का वर्णन है। किंतु वंशानुचरित केवल भविष्य, मत्स्य, वायु, विष्णु, ब्रह्मांड तथा भागवत पुराणों में ही प्राप्त होता है। गरुड़-पुराण में पौरव, इक्ष्वाकु और बार्हद्रथ राजवंशों की तालिका मिलती है, किंतु इनकी तिथि अनिश्चित है।

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क्यों इतनी प्रसिद्द है हड़प्पा संस्कृति?

भारतीय इतिहास के साधन के रूप में बौद्ध साहित्य का विशेष महत्व है। सबसे प्राचीन बौद्ध साहित्य त्रिपिटक हैं। ‘पिटक‘ का शाब्दिक अर्थ ‘टोकरी’ है। त्रिपिटक तीन हैं- सुत्तपिटक, विनयपिटक और अभिधम्मपिटक। इन तीनों पिटकों का संकलन महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण के उपरांत आयोजित विभिन्न बौद्ध संगीतियों में किया गया। सुत्तपिटक में बद्धदेव के धार्मिक विचारों और वचनों का संग्रह है। विनयपिटक में बौद्ध संघ, भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों के लिए आचरणीय नियमों का उल्लेख है और अभिधम्मपिटक में बौद्ध धर्म के दार्शनिक सिद्धांत हैं। त्रिपिटक से ईसा से पूर्व की शताब्दियों में भारत के सामाजिक व धार्मिक जीवन पर प्रकाश पड़ता है। दीर्घनिकाय में बुद्ध के जीवन से संबद्ध एवं उनके संपर्क में आये व्यक्तियों के विवरण हैं। संयुक्तनिकाय में छठी शताब्दी पूर्व के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन की जानकारी मिलती है। अंगुत्तरनिकाय में सोलह महानपदों की सूची मिलती है। खुद्दकनिकाय लघुग्रंथों का संग्रह है जो छठी शताब्दी ई.

हूणों का आक्रमण और गुप्त साम्राज्य का अंत

इंडियन नेशनल एसोसिएशन की स्थापना सुरेंद्रनाथ बनर्जी और आनंद मोहन बोस ने की थी

भारत की पहली मानी हुई सभ्यता है हड़प्पा सभ्यता। इसमें दो नामों का प्रयोग है: “सिंधु-सभ्यता” या “सिंधु…

उनकी राजपूत माताओं के लिए, संभवतः गुजराती शैली की इमारतों का निर्माण किया गया था। इसमें सबसे राजसी संरचना जामा मस्जिद और इसके प्रवेश द्वार है, जिसे बुलंद दरवाजा या बुलंद गेट के रूप में जाना जाता है।

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